rte online admission free books & dress related problems: आरटीई अधिनियम के अन्तर्गत फ्री किताबें और ड्रेस सम्बंधित समस्याएँ।
आरटीई ऑनलाइन एडमिशन के अंतर्गत दी जाने वाली फ्री किताबें और स्कूल ड्रेस इस अधिनियम के लिए एक आम समस्या हर वर्ष ज्यों की त्यों बनी रहती है। राजस्थान में प्रत्येक बालक बालिका नर्सरी से लेकर आठवीं तक आरटीई के अंतर्गत अध्ययन रत बालक बालिकाओं के लिए निजी विद्यालय प्राइवेट स्कूल संचालक फ्री किताबें और ड्रेस उपलब्ध नहीं करवाते हैं।
* क्या है मुख्य कारण है आईए जानते हैं।
1. बालक बालिका की फीस पुनर्भरण राशि प्रत्येक बालक बालिकाओं के लिए कल 13535 रुपए का फीस का भुगतान किया जाता है इसमें से केवल किताबों के लिए प्रति बालक बालिका के लिए 206 रुपए निर्धारित किए गए हैं।
2. बालक बालिका के लिए ड्रेस हेतु कोई शुल्क राज्य सरकार द्वारा प्राइवेट विद्यालय संचालकों को प्राप्त नहीं होता है।
3. विद्यालय की वास्तविक फीस लगभग कम से कम 20000 और अधिकतम आठवीं कक्षा तक 35000 के एवरेज में मात्र 13535 रुपए प्रत्येक बालक बालिकाओं की फीस पुनरभरण राशि निर्धारित की गई है।
4. नर्सरी और फर्स्ट क्लास की पुस्तक ₹2000 से लेकर ₹3000 में विद्यालय द्वारा निर्धारित चयनित बुक डीलर से ली जाती हैं इससे अभिभावक काफी असंतुष्ट है।
5. विद्यालय संचालकों का कहना है कि जो फीस पुनर्भरण के माध्यम से राज्य सरकार द्वारा हमें दी जाती है वही हमारे पास फीस देकर पढ़ने वाले बालक बालिकाओं की फीस की आधी भी नहीं होती है तो हम किताबें और ड्रेस कैसे दे सकते हैं यह यह संभव नहीं है।
* कैसे हो इस समस्या का निवारण है।
1. कुल मिलाकर राज्य सरकार को या तो एक अलग से ड्रेस शुल्क निर्धारित करना होगा।
2. किताबों के लिए दिए जाने वाला मात्र 206 रुपए के शुल्क को बढ़ाकर सुनियोजित करें। एक समान पाठ्य पुस्तक की कीमत निर्धारित करें जिससे कि अभिभावक खरीद पानी में समर्थ हो।
3. ड्रेस के लिए एक निर्धारित शुल्क विद्यालय को दिया जाना चाहिए जिससे कि विद्यालय संचालित संतुष्ट हो सके।
4. कोई भी विद्यालय अपने निर्धारण निर्धारण फीस से आदि फीस में पढ़ने को मजबूर है। तो सरकार को भी इस बारे में विचार करना चाहिए।
5. अभिभावक को फीस पुनरभरण की पूरी जानकारी नहीं होती है। इसलिए इस बारे में अभिभावकों को पूरी जानकारी देनी आवश्यक है क्योंकि इसके चलते कई बार अभिभावक और विद्यालय संचालकों के बीच काफी विरोधाभास देखने को मिलता है।
6. कई बार तो फीस पुनर्भरण राशि को ही राज्य सरकार द्वारा लटका दिया जाता है। तो कई बार तीन चार साल तक लंबित पड़ी रहती है।
7. आरटीई के अंतर्गत अधिनियम में पारदर्शिता लाई जानी चाहिए जिससे कि इस अधिनियम का पूरा लाभ विद्यालय संस्थाओं को और अभिभावकों को दोनों को मिल सके।